रंज-ओ-आरज़ू ये दोनोँ बिकते नहीँ दुकानोँ मेँ
इक पले आँख के गोशे,दूजा दिल के ताने-बाने मेँ
ढूँढ ही लीजिए उसे दिल मेँ,चाहे जिस दिल
क्या ज़रुरत है जाने की किसी सनमख़ाने मेँ
चाँद सुनते हैँ साल मेँ एक बार मय बरसाता है
क्या ज़रुरत है रोज़-रोज़ जाने की किसी मयख़ाने मेँ
हो के बेचैन ख़ुदा भी मस्जिदोँ से कभी निकल आता है
सुनते हैँ ऐसा असर भी होता है फ़कीरोँ के गाने मेँ
कभी चंद घड़ियोँ मेँ ही रात आसमाँ नाप लिया करती है
और कभी जमाने लग जाते हैँ इसे चाँद को ढूँढ़ कर लाने मेँ