क्या कहूं

क्या कहूं, तुम से मैं कि क्या है इश्क,
जान का रोग है, बला है इश्क़,
इश्क़ ही इश्क़ है, जहाँ देखो,
सारे आलम में भर रहा है, इश्क़,
इश्क़ माशूक़, इश्क़ आशिक़ है,
यानी अपना ही मुब्तला है इश्क़,
इश्क़ है तर्ज़-अ-तौर, इश्क़ के तयीन,
कहीं बंदा, तो कहीं खुदा भी है इश्क़,
कौन "मकसद" को, इश्क़ बिन पहुँचता,
आरजू इश्क़ वा मुददा है इश्क़,
कोई ख्वाहाँ नहीं मुहब्बत का,
तू कहे जिंस-ए-नारवा है इश्क़,
मीर जी ज़रद होते जाते है,
क्या कहीं तुम ने भी किया है "इश्क़ " ।।

मेरे हाल पर

मेरे हाल पर छोड़ दो मुझे तुम,
ख़्वाबों को जगाने वाले,
काँपते हाथ हैं ,
पाँव भी ना डगमगा जाएँ कहीं,
हमनें सीखा है सूखी रेत पर चलना,
हमें तुम उड़ते परिन्दों से भाव ना दो,
डगर-डगर चुभते राह में काँटे हैं,
फूलों का हसीन हमें तुम ख़्वाब ना दो ।।

यूँ चुप रहना ठीक नहीं

यूँ चुप रहना ठीक नहीं, कोई मीठी बात करो,
मोर, चकोर, पपीहा, कोयल सब को मात करो,
सावन तो मन बगिया से बिन बरसे बीत गया,
रस में डूबे नग़्मे की अब तुम बरसात करो ।।

यूँ ही

यूँ ही, रक्खा था किसी ने, "संग" इक दीवार पर,
सर झुकाए मैं खड़ा था, वो "ख़ुदा" बनता गया,
कौन है वो, "पाक दामन", जो हर इक लहजे से है,
"गलतियां" होती गईं और ये जहां बनता गया ।।

आज हम हैं

आज, हम हैं कल हमारी "यादें" होंगी,
जब हम ना होंगे, तब हमारी बातें होंगी,
कभी पलटोगे जिंदगी के ये "पन्ने",
तब, शायद आपकी आंखों से भी बरसातें होंगी ।।

सोचते-सोचते

सोचते-सोचते "दिल" डूबने लगता है मेरा,
इस, जहान की "तह" में "मुज़फ्फर" कोई दरिया तो नहीं,

रूह को "दर्द" मिला दर्द को "आँखें" ना मिली,
तुझको, महसूस किया है, तुझे देखा तो नहीं,

मेरी "तस्वीर" में रंग और किसी का तो नहीं,
घेर लें, मुझको सब आँखें, मैं तमाशा तो नहीं ।।

रंज-ओ-आरज़ू

रंज-ओ-आरज़ू ये दोनोँ बिकते नहीँ दुकानोँ मेँ
इक पले आँख के गोशे,दूजा दिल के ताने-बाने मेँ

ढूँढ ही लीजिए उसे दिल मेँ,चाहे जिस दिल
क्या ज़रुरत है जाने की किसी सनमख़ाने मेँ

चाँद सुनते हैँ साल मेँ एक बार मय बरसाता है
क्या ज़रुरत है रोज़-रोज़ जाने की किसी मयख़ाने मेँ

हो के बेचैन ख़ुदा भी मस्जिदोँ से कभी निकल आता है
सुनते हैँ ऐसा असर भी होता है फ़कीरोँ के गाने मेँ

कभी चंद घड़ियोँ मेँ ही रात आसमाँ नाप लिया करती है
और कभी जमाने लग जाते हैँ इसे चाँद को ढूँढ़ कर लाने मेँ

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