यूँ ही

यूँ ही, रक्खा था किसी ने, "संग" इक दीवार पर,
सर झुकाए मैं खड़ा था, वो "ख़ुदा" बनता गया,
कौन है वो, "पाक दामन", जो हर इक लहजे से है,
"गलतियां" होती गईं और ये जहां बनता गया ।।

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