चश्म्-ए-मयगूँ ज़रा इधर कर दे

चश्म्-ए-मयगूँ ज़रा इधर कर दे
दस्त-ए-कुदरत को बे-असर कर दे

तेज़ है आज दर्द-ए-दिल साक़ी
तल्ख़ि-ए-मय को तेज़-तर कर दे

जोश-ए-वहशत है तिश्नाकाम अभी
चाक-ए-दामन को ताज़गार कर दे

मेरी क़िस्मत से खेलने वाले
मुझ को क़िस्मत से बेख़बर कर दे

लुट रही है मेरी मता-ए-नियाज़
काश! वो इस तरफ़ नज़र कर दे

'अभिषेक' तक्मील-ए-आरज़ू मालूम
हो सके तो यूँ ही बसर कर दे!

contributed by, ABHISHEK

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