कौन हो तुम मेरे जिसकी कल्पना में सर्द है

कौन हो तुम मेरे जिसकी कल्पना में सर्द है
जिसके पास आते ही दिल में उठी एक दर्द है
हाँ!बढ़ जाती है बेचैनी तुमसे दूर जाते ही
मुरझाये फूल खिलते है तेरे पास आते ही
इस दिल की तड़प को क्या प्यार कहते है?
अगर इसको प्यार कहते है तो तुम क्यों दूर रहते है
हमारी दूरियों से तुमको भी और हमको भी है मतलब
नही समझेंगे दर्द हमारा छुपायेंगे भला कब तक
मेरे शब्दों के बेहिसाब मतलब को न देखो
मेरे गम और मेरे खुशियों को तराजू में ज़रा परखो
और पुचो खुदसे यह सवाल के मुझमे क्यों इतना दर्द है
कौन हो तुम मेरे जिसकी कल्पना में सर्द है ....

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