तू पास भी हो तो दिल बेक़रार अपना है
के हमको तेरा नहीं इंतज़ार अपना है
मिले कोई भी तेरा ज़िक्र छेड़ देते हैं
के जैसे सारा जहाँ राज़दार अपना है
वो दूर हो तो बजा तर्क-ए-दोस्ती का ख़याल
वो सामने हो तो कब इख़्तियार अपना है
ज़माने भर के दुखों को लगा लिया दिल से
इस आसरे पे के इक ग़मगुसार अपना है
"अभिषेक" राहत-ए-जाँ भी वही है क्या कीजे
वो जिस के हाथ से सीनाफ़िग़ार अपना है !
contributed by, ABHISHEK