कब ठहरेगा दर्द-ए-दिल

कब ठहरेगा दर्द-ए-दिल, कब रात बसर होगी
सुनते थे वो आयेंगे, सुनते थे सहर होगी

कब जान लहू होगी, कब अश्क गुहार होगा
किस दिन तेरी शनवाई ऐ दीद:-ए-तर होगी

कब महकेगी फसले-गुल, कब बहकेगा मयखाना
कब सुबह-ए-सुखन होगी, कब शाम-ए-नज़र होगी

वाइज़ है न जाहिद है, नासेह है न क़ातिल है
अब शहर में यारों की किस तरह बसर होगी

कब तक अभी रह देखें ऐ कांटे-जनाना
कब अश्र मुअय्यन है तुझको तो ख़बर होगी!
contributed by, ABHISHEK

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