फिर उसी राहगुज़र पर

फिर उसी राहगुज़र पर शायद
हम कभी मिल सकें मगर शायद

जान पहचान से ही क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त ग़ौर कर शायद

मुन्तज़िर जिन के हम रहे उनको
मिल गये और हमसफ़र शायद

जो भी बिछड़े हैं कब मिले हैं "अभिषेक"
फिर भी तू इन्तज़ार कर शायद !

contributed by, ABHISHEK

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