तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चिराग़
लोग क्या सादा हैं सूरज को दिखाते हैं चिराग़
अपनी महरूमियों पे शर्मिन्दा हैं
ख़ुद नहीं रखते तो औरों के बुझाते हैं चिराग़
बस्तियाँ चाँद सितारों पे बसाने वाले
कुर्रा-ए-अर्ज़ बुझाते जाते हैं चिराग़
क्या ख़बर है उनको के दामन भी भड़क उठते हैं
जो ज़माने की हवाओं से बचाते हैं चिराग़
ऐसी तारीकीयाँ आँखों में बसी हैं "अभिषेक"
रात तो रात हम दिन को जलाते हैं चिराग़ !
contributed by, ABHISHEK
रात तो रात हम दिन को जलाते हैं चिराग़ !
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