तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं

तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं।

हदीसे-यार के उन्वाँ निखरने लगते हैं
तो हर हरीम में गेसू सँवरने लगते हैं

हर अजनबी हमें मजरम दिखाई देता है
जो अब भी तेरी गली से गुज़रने लगते हैं

सबा से करते हैं ग़ुरबत-नसीब ज़िक्रे-वतन
वो चश्मे-सुबह में आँसू उभरने लगते हैं

वो जब भी करते हैं इस नुत्क़ो-लब की बख़ियागरी
फ़िज़ा में और भी नग़मे बिखरने लगते हैं

दरे-क़फ़स पे अँधेरे की मुहर लगती है
तो ‘अभिषेक’ दिल में सितारे उतरने लगते हैं!
contributed by, ABHISHEK

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