बसकि दुश्‌वार है

बसकि दुश्‌वार है हर काम का आसां होना
आद्‌मी को भी मुयस्‌सर नहीं इन्‌सां होना

गिर्‌यह चाहे है ख़राबी मिरे काशाने की
दर-ओ-दीवार से टप्‌के है बियाबां होना

वाए दीवानगी-ए शौक़ कि हर दम मुझ को
आप जाना उधर और आप ही हैरां होना

जल्‌वह अज़-बसकि तक़ाज़ा-ए निगह कर्‌ता है
जौहर-ए आइनह भी चाहे है मिज़ह्‌गां होना

`इश्‌रत-ए क़त्‌ल-गह-ए अह्‌ल-ए तमन्‌ना मत पूछ
`ईद-ए नज़्‌ज़ारह है शम्‌शीर का `उर्‌यां होना

ले गए ख़ाक में हम दाग़-ए तमन्‌ना-ए निशात
तू हो और आप ब सद-रन्‌ग गुलिस्‌तां होना

`इश्‌रत-ए पारह-ए दिल ज़ख़्‌म-ए तमन्‌ना खाना
लज़्‌ज़त-ए रेश-ए जिगर ग़र्‌क़-ए नमक्‌दां होना

की मिरे क़त्‌ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबह
हाए उस ज़ूद-पशेमां का पशेमां होना

हैफ़ उस चार गिरह कप्‌ड़े की क़िस्‌मत ग़ालिब
जिस की क़िस्‌मत में हो `आशिक़ का गरेबां होंना!


contributed by, Abhishek


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