मेरे दिल मेरे मुसाफ़िर

मेरे दिल मेरे मुसाफ़िर
हुआ फिर से हुक्म् सादिर
के वतन बदर हों हम तुम
दें गली गली सदायेँ
करें रुख़ नगर नगर का
के सुराग़ कोई पायेँ
किसी यार-ए-नामाबर का
हर एक अजनबी से पूछें
जो पता था अपने घर का
सर-ए-कू-ए-नाशनायाँ
हमें दिन से रात करना
कभी इस से बात करना
कभी उस से बात करना
तुम्हें क्या कहूँ के क्या है
शब-ए-ग़म बुरी बला है
हमें ये भी था ग़निमत
जो कोई शुमार होता
हमें क्या बुरा था मरना
अगर एक बार होता!
contributed by, ABHISHEK

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