दोनों जहान तेरी मोहब्बत मे

दोनों जहान तेरी मोहब्बत मे हार के
वो जा रहा है कोई शबे-ग़म गुज़ार के

वीरां है मैकदा ख़ुमो-सागर उदास हैं
तुम क्या गये कि रूठ गये दिन बहार के

इक फुर्सते-गुनाह मिली वो भी चार दिन
देखें हैं हमने हौसले परवरदिगार के

दुनियां ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुम से भी दिलफरेब हैं ग़म रोज़गार के

भूले से मुस्कुरा जो दिये थे वो आज अभिषेक
मत पूछ वलवले दिले-नकर्दाकार के!
contributed by, ABHISHEK

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