मैं दीवाना सही पर बात सुन ऐ हमनशीं मेरी
कि सबसे हाले-दिल कहता फिरूँ आदत नहीं मेरी
कि सबसे हाले-दिल कहता फिरूँ आदत नहीं मेरी
तअम्मुल क़त्ल में तुझको मुझे मरने की जल्दी थी
ख़ता दोनों की है उसमें, कहीं तेरी कहीं मेरी
भला क्यों रोकता है मुझको नासेह गिर्य: करने से
कि चश्मे-तर मेरा है, दिल मेरा है, आस्तीं मेरी
मुझे दुनिया के ग़म और फ़िक्र उक़बा की तुझे नासेह
चलो झगड़ा चुकाएँ आसमाँ तेरा ज़मीं मेरी
मैं सब कुछ देखते क्यों आ गया दामे-मुहब्बत में
चलो दिल हो गया था यार का, आंखें तो थीं मेरी
‘अभिषेक’ ऐसी ग़ज़ल पहले कभी मैंने न लिक्खी थी
मुझे ख़ुद पढ़के लगता है कि ये काविश नहीं मेरी...!
contributed by, ABHISHEK
मुझे ख़ुद पढ़के लगता है कि ये काविश नहीं मेरी...!
contributed by, ABHISHEK