न कोई ख़्वाब ...

न कोई ख़्वाब न ताबीर ऐ मेरे मालिक
मुझे बता मेरी तक़सीर ऐ मेरे मालिक

न वक़्त है मेरे बस में न दिल पे क़ाबू है
है कौन किसका इनागीर ऐ मेरे मालिक

उदासियों का है मौसम तमाम बस्ती पर
बस एक मैं नहीं दिलगीर ऐ मेरे मालिक

सभी असीर हैं फिर भी अगरचे देखने हैं
है कोई तौक़ न ज़ंजीर ऐ मेरे मालिक

सो बार बार उजड़ने से ये हुआ है कि अब
रही न हसरत-ए-तामीर ऐ मेरे मालिक

मुझे बता तो सही मेहरो-माह किसके हैं
ज़मीं तो है मेरी जागीर ऐ मेरे मालिक

अभिषेक’ तुझसे है ख़ुश और न तू ‘अभिषेक’ से है
सो बात हो गई गंभीर ऐ मेरे मालिक
contributed by, ABHISHEK


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