ज़िक्‌र उस

ज़िक्‌र उस परी-वश का और फिर बयां अप्‌ना
बन गया रक़ीब आख़िर था जो राज़्‌दां अप्‌ना

मै वह क्‌यूं बहुत पीते बज़्‌म-ए ग़ैर में या रब
आज ही हुआ मन्‌ज़ूर उन को इम्‌तिहां अप्‌ना

मन्‌ज़र इक बुलन्‌दी पर और हम बना सक्‌ते
`अर्‌श से इधर होता काश-के मकां अप्‌ना

दे वह जिस क़दर ज़िल्‌लत हम हंसी में टालेंगे
बारे आश्‌ना निक्‌ला उन का पास्‌बां अप्‌ना

दर्‌द-ए दिल लिखूं कब तक जाऊं उन को दिख्‌ला दूं
उंग्‌लियां फ़िगार अप्‌नी ख़ामह ख़ूं-चकां अप्‌ना

घिस्‌ते घिस्‌ते मिट जाता आप ने `अबस बद्‌ला
नन्‌ग-ए सिज्‌दह से मेरे सन्‌ग-ए आस्‌तां अप्‌ना

ता करे न ग़म्‌माज़ी कर लिया है दुश्‌मन को
दोस्‌त की शिकायत में हम ने हम-ज़बां अप्‌ना

हम कहां के दाना थे किस हुनर में यक्‌ता थे
बे-सबब हुआ ग़ालिब दुश्‌मन आस्‌मां अप्‌ना!

contributed by, Abhishek

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