आये कुछ अब्र कुछ

आये कुछ अब्र कुछ शराब आये
उस के बाद आये जो अज़ाब आये

बाम-ए-मीना से माहताब उतरे
दस्त-ए-साक़ी में आफ़ताब आये

हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो
सामने फिर वो बेनक़ाब आये

उम्र के हर वरक़ पे दिल को नज़र
तेरी मेहेर-ओ-वफ़ा के बाब आये

कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आये

न गई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में यूं रोज़ इन्क़लाब आये

जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम ख़ानाख़राब आये

इस तरह अपनी ख़ामोशी गूँजी
गोया हर सिम्त से जवाब आये

'अभिषेक' थी राह सर बसर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आये!

contributed by, ABHISHEK


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