अब वो मंजर, ना वो चेहरे ही नजर आते हैं
मुझको मालूम ना था ख्वाब भी मर जाते हैं
जाने किस हाल में हम हैं कि हमें देख के सब
एक पल के लिये रुकते हैं गुजर जाते हैं
साकिया तूने तो मयखाने का ये हाल किया
रिन्द अब मोहतसिबे-शहर के गुण गाते हैं
ताना-ए-नशा ना दो सबको कि कुछ सोख्त-जाँ
शिद्दते-तिश्नालबी से भी बहक जाते हैं
जैसे तजदीदे-तअल्लुक की भी रुत हो कोई
ज़ख्म भरते हैं तो गम-ख्वार भी आ जाते हैं
एहतियात अहले-मोहब्बत कि इसी शहर में लोग
गुल-बदस्त आते हैं और पा-ब-रसन जाते हैं!
मुझको मालूम ना था ख्वाब भी मर जाते हैं
जाने किस हाल में हम हैं कि हमें देख के सब
एक पल के लिये रुकते हैं गुजर जाते हैं
साकिया तूने तो मयखाने का ये हाल किया
रिन्द अब मोहतसिबे-शहर के गुण गाते हैं
ताना-ए-नशा ना दो सबको कि कुछ सोख्त-जाँ
शिद्दते-तिश्नालबी से भी बहक जाते हैं
जैसे तजदीदे-तअल्लुक की भी रुत हो कोई
ज़ख्म भरते हैं तो गम-ख्वार भी आ जाते हैं
एहतियात अहले-मोहब्बत कि इसी शहर में लोग
गुल-बदस्त आते हैं और पा-ब-रसन जाते हैं!
मोहतसिबे-शहर - धर्माधिकारी, सोख्त-जाँ - दिल जले
शिद्दते-तिश्नालबी - प्यास की अधिकता, तजदीदे-तअल्लुक - रिश्तों का नवीनीकरण
गम-ख्वार - गम देने वाले
contributed by, ABHISHEK
शिद्दते-तिश्नालबी - प्यास की अधिकता, तजदीदे-तअल्लुक - रिश्तों का नवीनीकरण
गम-ख्वार - गम देने वाले
contributed by, ABHISHEK