हर्फ़े-ताज़ा की तरह...

हर्फ़े-ताज़ा की तरह क़िस्स-ए-पारीना कहूँ
कल की तारीख़ को मैं आज का आईना कहूँ

चश्मे-साफ़ी से छलकती है मये-जाँ तलबी
सब इसे ज़हर कहें मैं इसे नौशीना कहूँ

मैं कहूँ जुरअते-इज़हार हुसैनीय्यत है
मेरे यारों का ये कहना है कि ये भी न कहूँ

मैं तो जन्नत को भी जानाँ का शबिस्ताँ जानूँ
मैं तो दोज़ख़ को भी आतिशकद-ए-सीना कहूँ

ऐ ग़मे-इश्क़ सलामत तेरी साबितक़दमी
ऐ ग़मे-यार तुझे हमदमे-दैरीना कहूँ

इश्क़ की राह में जो कोहे-गराँ आता है
लोग दीवार कहें मैं तो उसे ज़ीना कहूँ

सब जिसे ताज़ा मुहब्बत का नशा कहते हैं
मैं ‘अभिषेक’ उस को ख़ुमारे-मये-दोशीना कहूँ..!

contributed by, ABHISHEK

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