न हरीफ़े जाँ न ...

न हरीफ़े-जाँ न शरीक़े-ग़म शबे-इन्तज़ार कोई तो हो
किसे बज़्मे-शौक़ में लाएँ हम दिले-बेक़रार कोई तो हो

किसे ज़िन्दगी है अज़ीज़ अब किसे आरज़ू-ए-शबे-तरब
मगर ऐ निगारे-वफ़ा- तलब तिरा एतिबार कोई तो हो

कहीं तारे-दामने-गुल मिले तो य मान लें कि चमन खिले
कि निशान फ़स्ले-बहार का सरे-शाख़सार कोई तो हो

ये उदास-उदास-से बामो-दर , ये उजाड़-उजाड़-सी रहगुज़र
चलो हम नहीं न सही मगर सरे-कू-ए-यार कोई तो हो

ये सुकूने-जाँ की घड़ी ढले तो चराग़े-दिल ही न बुझ चले
वो बला से हो ग़मे-इश्क़ या ग़मे-रोज़गार कोई तो हो

सरे-मक़्तले-शबे-आरज़ू रहे कुछ तो इश्क़ की आबरू
जो नहीं अदू तो 'अभिषेक' तू कि नसीबे-दार कोई तो हो...!
conttributed by, ABHISHEK

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