ज़रा सी

ज़रा सी रात ढल जाये, तो शायद नींद आ जाये,
ज़रा सा दिल बहल जाये तो शायद नींद आ जाये,

अभी तो कुर्ब है बेचेनी है और बेक़रारी है,
तबियत कुछ संभल जाये, तो शायद नींद आ जाये,

अभी तो नरम झोंकों में छुपे हैं तीर "यादों" के,
हवा का रुख बदल जाये तो शायद नींद आ जाये,

ये हँसता मुस्कुराता काफिला चाँद और तारों का,
ज़रा आगे निकल जाये तो शायद नींद आ जाये,

ये तूफ़ान आंसुओं का जो उभर आया है पलकों तक,
किसी सूरत से टल जाये तो शायद नींद आ जाये !!

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