अपने सिवा

अपने सिवा हमारे न होने का ग़म किसे,
अपनी तलाश में तो हम ही हम है,
कुछ आज शाम ही से है "दिल" भी बुझा-बुझा,
कुछ इस शहर के चराग भी मद्धम

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