वो बेदर्द है बड़ा

वो "बेदर्द" है बड़ा, यूँ दिल तोड़ जाता है,
आदत बिगाड़कर, साथ छोड़ जाता है,

हर "रात" ज़ख्म पुराने कुरेद देती है,
हर दिन, नया कोई "ग़म" जोड़ जाता है,

उसकी, अदा-ऐ-फरेब की इन्तिहाँ देखो,
दिखाकर "मंजिल" फिर राहें मोड़ जाता है,

ग़म-ऐ-दुनिया से तो हम, टस से मस नहीं होते,
तेरा "ग़म" रूह तक को झंझोड़ जाता है ।।

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