गुलमर्ग कहो लब को

गुलमर्ग कहो लब को, जुल्फ को घटा कहो
दीदा को जाम ऐ मे, तो पलक को रिदा कहो

एक मर्तबा वो न सुने तो बारहा कहो
पे दर पाए ओ दू बा दू ओ जा बा जा कहो

मिलते हुवे ज़बान से मुझको करो सलाम
और दिल में मेरे वास्ते एक बाद-ड्यू कहो

इनकार तो उस ने किया, अब तुम पे मुनहसिर
तुम इन्तहा कहो इसे या इब्तेदा कहो

आलम हाय ये के गुल को कहो मिसल ऐ गुल-उजार
हालत हाय ये के माह को मह-विष नुमा कहो

जो कुछ भी लिखो, दिल से लिखो, बे-कतार लिखो
जो कुछ भी कहो, खुल के कहो, बरमला कहो

नासेह के रू बा रू भी बयान ऐ वसल करो
कू ऐ बुतान में रह के भी नाम ऐ खुदा कहो

जो मैं कहूं, सदा लाघव, खिरद से मावरा
जो तुम कहो हमेशा दुरुस्त ओ बजा कहो

देखो ज़रा बाहिर निकल के, शैख़, सुभ ऐ नौ
न ज़ुल्मत ऐ मस्जिद में शमा को जिया कहो

उनको तो कह के आ गए "दिल में नही हैं आप"
अब सर बा-दस्त सोचते हो दिल से किया कहो

कुछ तो वो नाजनीन ख़ुद भी अन-कहा सुने
कुछ आप भी, ए नामाबर जी! अन-सुना कहो

कहता हाय ग़म-गुसार के "करते हो उस से इश्क!
मुझ से तो रोज़ कहते हो, उस से ज़रा कहो"

तब्लीघ ऐ इंतेखाब ऐ राह ऐ हक हवी क़दीम
पब्लिक की हाय डिमांड, अभिषेक, कुछ नया कहो!

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