गनीम से भी

गनीम से भी अदावत में हद नहीं माँगी
कि हार मान ली, लेकिन मदद नहीं माँगी

हजार शुक्र कि हम अहले-हर्फ़-जिन्दा ने
मुजाविराने-अदब से सनद नहीं माँगी

बहुत है लम्हा-ए-मौजूद का शरफ़ भी मुझे
सो अपने फ़न से बकाये-अबद नहीं माँगी

कबूल वो जिसे करता वो इल्तिजा नहीं की
दुआ जो वो ना करे मुस्तरद, नहीं माँगी

मैं अपने जाम-ए-सद-चाक से बहुत खुश हूं
कभी अबा-ओ-कबा-ए-खिरद नहीं माँगी

शहीद जिस्म सलामत उठाये जाते हैं
तभी तो गोरकनों से लहद नहीं माँगी

मैं सर-बरहना रहा फ़िर भी सर कशीदा रहा
कभी कुलाह से तौकीद सर नहीं माँगी

अता-ए-दर्द में वो भी नहीं था दिल का गरीब
अभिषेक मैनें भी बख्शिश में हद नहीं माँगी...!
contributed by, ABHISHEK


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