ज़ख्म को फ़ूल तो सर-सर को सबा कहते हैं
जाने क्या दर्द है, क्या लोभ है, क्या कहते हैं
क्या कयामत है कि जिनके लिये रुक रुक के चले
अब वही लोग हमें आबला-पा कहते हैं
कोई बतलाओ कि इक उम्र का बिछुडा महबूब
इत्तेफ़ाकन कहीं मिल जाये तो क्या कहते हैं
ये भी अन्दाज़े सुखन है कि खता को तेरी
ग़मज़-ओ-इश्वः-ओ-अन्दाज-ओ-अदा कहते हैं
जब तलक दूर है तू तेरी परस्तिश कर लें
हम जिसे छू ना सकें, उसको खुदा कहते हैं
क्या त़अज्जुब है कि हम अहले-तमऩ्ना को अभिषेक
वो जो महरूम-ए-तमऩ्ना हैं बुरा कहते हैं!
contributed by, ABHISHEK
जाने क्या दर्द है, क्या लोभ है, क्या कहते हैं
क्या कयामत है कि जिनके लिये रुक रुक के चले
अब वही लोग हमें आबला-पा कहते हैं
कोई बतलाओ कि इक उम्र का बिछुडा महबूब
इत्तेफ़ाकन कहीं मिल जाये तो क्या कहते हैं
ये भी अन्दाज़े सुखन है कि खता को तेरी
ग़मज़-ओ-इश्वः-ओ-अन्दाज-ओ-अदा कहते हैं
जब तलक दूर है तू तेरी परस्तिश कर लें
हम जिसे छू ना सकें, उसको खुदा कहते हैं
क्या त़अज्जुब है कि हम अहले-तमऩ्ना को अभिषेक
वो जो महरूम-ए-तमऩ्ना हैं बुरा कहते हैं!
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