करूँ न याद अगर


करूँ न याद अगर किस तरह भुलाऊँ उसे
ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे

वो ख़ार-ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिन्द
मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे

ये लोग तज़्क़िरे करते हैं अपने लोगों के
मैं कैसे बात करूँ और कहाँ से लाऊँ उसे

मगर वो ज़ूदफ़रामोश ज़ूद-रंज भी है
कि रूठ जाये अगर याद कुछ दिलाऊँ उसे

वही जो दौलत-ए-दिल है वही जो राहत-ए-जाँ
तुम्हारी बात पे ऐ नासिहो उसे

जो हमसफ़र-ए-मंज़िल बिछड़ रहा है " अभिषेक "
अजब नहीं कि अगर याद भी न आऊँ उसे!

contributed by, ABHISHEK

Translate This Blog