कहा था किसने

कहा था किसने के अहद-ए-वफ़ा करो उससे
जो यूँ किया है तो फिर क्यूँ गिला करो उससे

ये अह्ल-ए-बज़ तुनक हौसला सही फिर भी
ज़रा फ़साना-ए-दिल इब्तिदा करो उससे

ये क्या के तुम ही ग़म-ए-हिज्र के फ़साने कहो
कभी तो उसके बहाने सुना करो उससे

नसीब फिर कोई तक़्रीब-ए-क़र्ब हो के न हो
जो दिल में हों वही बातें किया करो उससे

"अभिषेक" तर्क-ए-त'अल्लुक़ तो ख़ैर क्या होगा
यही बहुत है के कम कम मिला करो उससे !

contributed by,
ABHISHEK


Translate This Blog