क़ुर्बतों

क़ुर्बतों[१] में भी जुदाई के ज़माने माँगे
दिल वो बेमेह्र[२] कि रोने के बहाने माँगे

अपना ये हाल के जी हार चुके लुट भी चुके
और मुहब्बत वही अन्दाज़ पुराने माँगे

यही दिल था कि तरसता था मरासिम [३]के लिए
अब यही तर्के-तल्लुक़[४] के बहाने माँगे

हम न होते तो किसी और के चर्चे होते
खल्क़त-ए-शहर[५] तो कहने को फ़साने माँगे

ज़िन्दगी हम तेरे दाग़ों से रहे शर्मिन्दा
और तू है कि सदा आइनेख़ाने[६]माँगे

दिल किसी हाल पे क़ाने[७] ही नहीं जान-ए-"अभिषेक"
मिल गये तुम भी तो क्या और न जाने माँगे!

  1. सामीप्य
  2. निर्दयी
  3. प्रेम-व्यवहार,सम्बन्ध
  4. संबंध-विच्छेद
  5. शहरी जनता
  6. वह भवन जिसके चारों ओर दर्पण लगे हों
  7. आत्मसंतोषी
contributed by, ABHISHEK

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