क़ुर्बतों[१] में भी जुदाई के ज़माने माँगे
दिल वो बेमेह्र[२] कि रोने के बहाने माँगे
अपना ये हाल के जी हार चुके लुट भी चुके
और मुहब्बत वही अन्दाज़ पुराने माँगे
यही दिल था कि तरसता था मरासिम [३]के लिए
अब यही तर्के-तल्लुक़[४] के बहाने माँगे
हम न होते तो किसी और के चर्चे होते
खल्क़त-ए-शहर[५] तो कहने को फ़साने माँगे
ज़िन्दगी हम तेरे दाग़ों से रहे शर्मिन्दा
और तू है कि सदा आइनेख़ाने[६]माँगे