चाँद के साथ

चाँद के साथ कई दर्द पुराने निकले

कितने गम थे जो तेरे गम के बहाने निकले

फसल-ऐ गुल आई फिर इक बार असीरान-ऐ-वफ़ा

अपने ही खून के दरिया में.न नहाने निकले

उम्र गुज़री है शब्-ऐ-तार में आँखें मलते

किस उफक से मेरा खुर्शीद न जाने निकले..


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