पयाम आये हैं

पयाम आये हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे
जिसे क़रार न आया कहीं भुला के मुझे

जुदाइयाँ हों तो ऐसी कि उम्र भर न मिले
फ़रेब तो दो ज़रा सिलसिले बढ़ा के मुझे

नशे से कम तो नहीं याद-ए-यार का आलम
कि ले उड़ा है कोई दोश पर हवा के मुझे

मैं ख़ुद को भूल चुका था मगर जहाँ वाले
उदास छोड़ गये आईना दिखा के मुझे

तुम्हारे बाम से अब कम नहीं है रिफ़अते-दार
जो देखना हो तो देखो नज़र उठा के मुझे

खिँची हुई है मेरे आँसुओं में इक तस्वीर
'अभिषेक' देख रहा है वो मुस्कुरा के मुझे!

contributed by, ABHISHEK

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