पेच रखते हो बहुत


पेच रखते हो बहुत साज-ओ-दस्तार के बीच
मैनें सर गिरते हुए देखे हैं बाज़ार के बीच

बाग़बानों को अजब रंज से तकते हैं गुलाब
गुलफ़रोश आज बहुत जमा हैं गुलज़ार के बीच

कज अदाओं की इनायत है कि हम से उश्शाक़
कभी दीवार के पीछे कभी दीवार के बीच

तुम हो नाख़ुश तो यहाँ कौन है ख़ुश फिर भी "अभिषेक"
लोग रहते हैं इसी शहर-ए-दिल-ए-आज़ार के बीच!

contributed by, ABHISHEK

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