कभी यूँ भी आ मेरी आँख में
के मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे
मगर उस के बाद सहर न हो
वोह बार रहीम-ओ-करीम है
मुझे यह सिफत भी अत करे
तुझे भोलने की दुवा करो
तू दुवा में मेरी असर न हो
कभी दिन की धुप में झूम के
कभी शब् के फूल चूम के
योहें साथ साथ चले सदा
कभी ख़तम अपना सफर न हो
मेरे पास मेरे हबीब आ
ज़रा और दिल के करीब आ
तुझे धेर्कनू में बसलूँ में
के बिचेरने का कभी देर न हो !
के मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे
मगर उस के बाद सहर न हो
वोह बार रहीम-ओ-करीम है
मुझे यह सिफत भी अत करे
तुझे भोलने की दुवा करो
तू दुवा में मेरी असर न हो
कभी दिन की धुप में झूम के
कभी शब् के फूल चूम के
योहें साथ साथ चले सदा
कभी ख़तम अपना सफर न हो
मेरे पास मेरे हबीब आ
ज़रा और दिल के करीब आ
तुझे धेर्कनू में बसलूँ में
के बिचेरने का कभी देर न हो !