आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा|
वर्ना आँधी में दिया किस ने जलाया होगा|
ज़र्रे ज़र्रे पे जड़े होंगे कुँवारे सज्दे,
एक एक बुत को ख़ुदा उस ने बनाया होगा|
प्यास जलते हुये काँटों की बुझाई होगी,
रिसते पानी को हाथेली पे सजाया होगा|
मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर,
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा|
ख़ून के छींटे कहीं पोछ न लें रेह्रों से,
किस ने वीराने को गुलज़ार बनाया होगा|
contributed by, ABHISHEK