हम भी थे मसरूर कभी

हम भी थे मसरूर कभी
अब संगे मजार है
पहले गहना-ऐ - बदन थे
अब बकते सरे बाज़ार है.!

बाजोर बज्म में नीलम होते रहे
फत्क्त फजिः फजुर फेर्ज़म होते रहे
लुट केर बिखेर ते भी केसे
हम लुटने में फुंकर है...!

पहले गहना-ऐ-बदन थे
अब बिकते सरे बाज़ार है.!

यु शराब में उतरते न थे
अश्क यु छलकते न थे
क्या हुवा जो रोनक अफरोज थे
अब शम्मा-ऐ-मजार है...!

पहले गहने-ऐ-बदन थे
अब बिकते सरे बाज़ार है...!

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