वफ़ा के बाब में

वफ़ा के बाब में इल्ज़ाम-ए-आशिक़ी न लिया
कि तेरी बात की और तेरा नाम भी न लिया

ख़ुशा वो लोग कि महरूम-ए-इल्तिफ़ात रहे
तेरे करम को ब-अंदाज़े-सादगी न लिया

तुम्हारे बाद कई हाथ दिल की सम्त बढ़े
हज़ार शुक्र गिरेबाँ को हमने सी न लिया

तमाम मस्ती-ओ-तिश्नालबी के हंगामे
किसी ने संग उठाया किसी ने मीना लिया

अभिषेक’ ज़ुल्म है इतनी ख़ुद-ऐतमादी भी
कि रात भी थी अँधेरी चराग़ भी न लिया!

contributed by,
ABHISHEK

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