वफ़ा के ख़्वाब मुहब्बत का आसर ले जा
अगर चला है तो जो कुछ मुझे दिया ले जा
मक़ाम-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ आ गया है फिर जानाँ
ये ज़ख़्म मेरे सही तीर तो उठा ले जा
यही है क़िस्मत-ए-सहरा यही करम तेरा
कि बूँद बूँद अता कर घटा घटा ले जा
ग़ुरूर-ए-दोस्त से इतना भी दिलशिकस्ता न हो
फिर उठ के सामने दामन-ए-इल्तजा ले जा
नदामतें हों तो सर बार-ए-दोश होता है
"अभिषेक" जाँ के एवज़ आबरू बचा ले जा !
contributed by, ABHISHEK
"अभिषेक" जाँ के एवज़ आबरू बचा ले जा !
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