यूँ सजा चाँद कि झलका तेरे अंदाज़ का रंग
यूँ फ़ज़ा महकी कि बदला मेरे हमराज़ का रंग
साया-ए-चश्म में हैराँ रुख़-ए-रौशन का जमाल
सुर्ख़ी-ए-लब पे परेशाँ तेरी आवाज़ का रंग
बेपिये हों कि अगर लुत्फ़ करो आख़िर-ए-शब
शीशा-ए-मय में ढले सुबह के आग़ाज़ का रंग
चंगो-नय रंग पे थे अपने लहू के दम से
दिल ने लय बदली तो मधम हुआ हर साज़ का रंग
इक सुख़न और कि फिर रंग-ए-तकल्लुम तेरा
हर्फ़-ए-सादा को इनायत करे एजाज़ का रंग!
contributed by, ABHISHEK