ये किस ख़लिश ने

ये किस ख़लिश ने फिर इस दिल में आशियाना किया
फिर आज किस ने सुख़न हम से ग़ायेबाना किया

ग़म-ए-जहाँ हो, रुख़-ए-यार हो के दस्त-ए-उदू
सलोओक जिस से किया हमने आशिक़ाना किया

थे ख़ाक-ए-राह भी हम लोग क़हर-ए-तूफ़ाँ भी
सहा तो क्या न सहा और किया तो क्या न किया

ख़ुशा के आज हर इक मुद्दई के लब पर है
वो राज़ जिस ने हमें राँद-ए-ज़माना किया

वो हीलागर जो वफ़ाजू भी है जफ़ाख़ू भी
किया भी "अभिषेक" तो किस बुत से दोस्ताना किया!

contributed by, ABHISHEK

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