हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है

हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है
दुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है

करते हैं जिस पे ता'न, कोई जुर्म तो नहीं
शौक़-ए-फ़ुज़ूल-ओ-उल्फ़त-ए-नकाम ही तो है

दिल मुद्दई के हर्फ़-ए-मलामत से शाद है
ऐ जान-ए-जाँ ये हर्फ़ तेरा नाम ही तो है

दिल ना-उम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम, मगर शाम ही तो है

दस्त-ए-फ़लक में, गर्दिश-ए-तक़दीर तो नहीं
दस्त-ए-फ़लक में, गर्दिश-ए-अय्याम ही तो है

आख़िर तो एक रोज़ करेगी नज़र वफ़ा
वो यार-ए-ख़ुशख़साल सर-ए-बाम ही तो है

भीगी है रात 'अभिषेक' ग़ज़ल इब्तिदा करो
वक़्त-ए-सरोद दर्द का हंगाम ही तो है!

contributed by, ABHISHEK

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