अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी...

अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी
इक ग़ज़ल है कि हो रही है अभी

मैं भी शहरे-वफ़ा में नौवारिद
वो भी रुक रुक के चल रही है अभी

मैं भी ऐसा कहाँ का ज़ूद शनास
वो भी लगता है सोचती है कभी

दिल की वारफतगी है अपनी जगह
फिर भी कुछ एहतियात सी है अभी

गरचे पहला सा इज्तिनाब नहीं
फिर भी कम कम सुपुर्दगी है अभी

कैसा मौसम है कुछ नहीं खुलता
बूंदा-बांदी भी धूप भी है अभी

खुद-कलामी में कब ये नशा था
जिस तरह रु-ब-रू कोई है अभी

कुरबतें लाख खूबसूरत हों
दूरियों में भी दिलकशी है अभी

फ़सले-गुल में बहार पहला गुलाब
किस की ज़ुल्फ़ों में टांकती है अभी

सुबह नारंज के शिगूफ़ों की
किसको सौगात भेजती है अभी

मैं तो समझा था भर चुके सब ज़ख्म
दाग शायद कोई कोई है अभी

मुद्दतें हो गईं अभिषेक मगर
वो जो दीवानगी थी, वही है अभी...!
contributed by, ABHISHEK

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