अब वो झोंके कहाँ...

अब वो झोंके कहाँ सबा जैसे
आग है शह्र की हवा जैसे

शब सुलगती है दोपहर की तरह
चाँद ,सूरज से जल-बुझा जैसे

मुद्दतों बाद भी ये आलम है
आज ही तू जुदा हुआ जैसे

इस तरह मंज़िलों से हूँ महरूम
मैं शरीक़े-सफ़र न था जैसे

अब भी वैसी है दूरी-ए-मंज़िल
साथ
चलता हो रास्ता जैसे

इत्तिफ़ाक़न भी ज़िंदगी में ‘अभिषेक’
दोस्त मिलते नहीं ‘ज़िया’ जैसे...!
contributed by, ABHISHEK

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