फिर उसी राहगुज़र पर शायद
हम कभी मिल सकें मगर शायद
जान पहचान से ही क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त ग़ौर कर शायद
मुन्तज़िर जिन के हम रहे उनको
मिल गये और हमसफ़र शायद
जो भी बिछड़े हैं कब मिले हैं "अभिषेक"
फिर भी तू इन्तज़ार कर शायद...!
contributed by, ABHISHEK
हम कभी मिल सकें मगर शायद
जान पहचान से ही क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त ग़ौर कर शायद
मुन्तज़िर जिन के हम रहे उनको
मिल गये और हमसफ़र शायद
जो भी बिछड़े हैं कब मिले हैं "अभिषेक"
फिर भी तू इन्तज़ार कर शायद...!
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