इज़्हार...

पत्थर की तरह अगर मैं चुप रहूँ
तो ये न समझ कि मेरी हस्ती
बेग़ान-ए-शोल-ए-वफ़ा है
तहक़ीर से यूँ न देख मुझको
ऐ संगतराश!
तेरा तेशा
मुम्किन है कि ज़र्बे-अव्वली से
पहचान सके कि मेरे दिल में
जो आग तेरे लिए दबी है
वो आग ही मेरी ज़िंदगी है...!
contributed by, ABHISHEK

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