नींद...

सर्द पलकों की सलीबों से उतारे हुए ख़्वाब
रेज़ा -रेज़ा हैं मिरे सामने शीशों की तरह
जिन के टुकड़ों की चुभन,जिनके ख़राशों की जलन
उम्र-भर जागते रहने की सज़ा देती है
शिद्दते-कर्ब से दीवाना बना देती है

आज इस क़ुर्ब के हंगाम वो अहसास कहाँ
दिल में वो दर्द न आँखों में चराग़ों का धुवाँ
और सलीबों से उतारे हुए ख़्वाबों की मिसाल
जिस्म गिरती हुई दीवार की मानिंदनिढाल
तू मिरे पास सही ऐ मिरे आज़ुर्दा-जमाल...!
contributed by, ABHISHEK

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