ख़ुदकलामी...

देखे ही नहीं वो लबो-रुख़सार वो ग़ेसू
बस एक खनकती हुई आवाज़ का जादू
हैरान परेशाँ लिए फिरता है तू हर सू
पाबंदे- तसव्वुर नहीं वो जल्वा-ए-बेताब
हो दूर तो जुगनू है क़रीब आए तो ख़ुशबू
लहराए तो शोला है छ्नक जाए तो घुँघरू
बाँधे हैं निगाहोँ ने सदाओं के भी मंज़र
वो क़हक़हे जैसी भरी बरसात में कू-कू
जैसे कोई क़ुमरी सरे-शमशाद लबे-जू
ऐ दिल तेरी बातों में कहाँ तक कोई आए
जज़्बात की दुनिया में कहाँ सोच के पहलू
कब आए है फ़ित्राक़ में वहशतज़दा आहू
माना कि वो लब होंगे शफ़क़-रंगो-शरर ख़ू
शायद कि वो आरिज़ हों गुले-तर से भी ख़ुशरू
दिलकश ही सही हल्क़-ए-ज़ुल्फ़ो-ख़मो-अबरू
पर किसको ख़बर किसका मुक़द्दर है ये सब कुछ
ख़्वाबों की घटा दूर बरस जाएगी और तू
लौट आएगा लेकर फ़क़त आहें फ़क़त आँसू...!
contributed by, ABHISHEK

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