वो चाँद जो मेरा हमसफ़र था
दूरी के उजाड़ जंगलों में
अब मेरी नज़र से छुप चुका है
इक उम्र से मैं मलूलो-तन्हा
ज़ुल्मात की रहगुज़ार में हूँ
मैं आगे बढ़ूँ कि लौट जाऊँ
क्या सोच के इन्तज़ार में हूँ
कोई भी नहीं जो यह बताए
मैं कौन हूँ किस दयार में हूँ...!
contributed by, ABHISHEK
दूरी के उजाड़ जंगलों में
अब मेरी नज़र से छुप चुका है
इक उम्र से मैं मलूलो-तन्हा
ज़ुल्मात की रहगुज़ार में हूँ
मैं आगे बढ़ूँ कि लौट जाऊँ
क्या सोच के इन्तज़ार में हूँ
कोई भी नहीं जो यह बताए
मैं कौन हूँ किस दयार में हूँ...!
contributed by, ABHISHEK