अब मेरे नाम...

अब मेरे नाम की ख़ुशी है कहीं,
मैं कहीं मेरी ज़िन्दगी है कहीं।

बात करने से ज़ख़्म जलते हैं,
आग सीने में यूँ दबी है कहीं।

नब्ज़ चलती है साँस चलती है,
ज़िन्दगी फ़िर भी क्यूँ थमी है कहीं।

जिसकी ख़्वाहिश फ़रिश्ते करते हैं,
सुनते हैं ऐसा आदमी है कहीं।

जिस घड़ी का था इंतज़ार मुझे,
वो घड़ी पीछे रह गई है कहीं।
contributed by, ABHISHEK

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