अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
हम लोग जब मिले तो कोई दूसरा भी हो
तू जानता नहीं मेरी चाहत अजीब है
मुझको मना रहा हैं कभी ख़ुद खफ़ा भी हो
तू बेवफ़ा नहीं है मगर बेवफ़ाई कर
उसकी नज़र में रहने का कुछ सिलसिला भी हो
पतझड़ के टूटते हुए पत्तों के साथ-साथ
मौसम कभी तो बदलेगा ये आसरा भी हो
चुपचाप उसको बैठ के देखूँ तमाम रात
जागा हुआ भी हो कोई सोया हुआ भी हो
उसके लिए तो मैंने यहाँ तक दुआएँ कीं
मेरी तरह से कोई उसे चाहता भी हो
इतरी सियाह रात में किसको सदाएँ दूँ
ऐसा चिराग़ दे जो कभी बोलता भी हो...!
contributed by, ABHISHEK
हम लोग जब मिले तो कोई दूसरा भी हो
तू जानता नहीं मेरी चाहत अजीब है
मुझको मना रहा हैं कभी ख़ुद खफ़ा भी हो
तू बेवफ़ा नहीं है मगर बेवफ़ाई कर
उसकी नज़र में रहने का कुछ सिलसिला भी हो
पतझड़ के टूटते हुए पत्तों के साथ-साथ
मौसम कभी तो बदलेगा ये आसरा भी हो
चुपचाप उसको बैठ के देखूँ तमाम रात
जागा हुआ भी हो कोई सोया हुआ भी हो
उसके लिए तो मैंने यहाँ तक दुआएँ कीं
मेरी तरह से कोई उसे चाहता भी हो
इतरी सियाह रात में किसको सदाएँ दूँ
ऐसा चिराग़ दे जो कभी बोलता भी हो...!
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