कभी गुंचा, कभी शोला

कभी गुंचा, कभी शोला, कभी शबनम की तरह,
लोग मिलते हैं बदलते "मौसम" की तरह ।
कैसे हमदर्द हो तुम, कैसी मसीहाई है,
दिल पे "नश्तर" भी लगते हो "मरहम" की तरह ।।

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